Sunday, May 2, 2021

ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........ 

इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है,

जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं,

फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है। 

ये क्या हो रहा है..... 

कहीं इंजेक्शन का धंधा,कहीं ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी,

कोई लाश लिए , शमशान में एक कोने  के लिए रो रहा है। 

ये क्या हो रहा है..... 

जिसे बेड मिला ,फिर उसने बेड छोड़ा नहीं,

किसी ने बेड के इंतज़ार में दम तोड़ दिया,

इंसान क्यों इंसानियत खो रहा है। 

ये क्या हो रहा है....... 

हर दूसरे ने, बस मौके का फायदा उठाया,

ज़मीर बेच-बेच  खूब पैसा कमाया,

देखो तो, एम्बुलेंस का किराया भी आसमान छू रहा। 

ये क्या हो रहा है.......         

                           

Monday, August 17, 2015

क्या दौर आया ज़माने का , कि हिसाब करने वाले बिक  गए,
सच और झूठ क्या है , ये बताने वाले बिक गए। 
आँखों से आँसू नहीं छलकते अब ,
क्या कहें मृदु , शायद आंसुओं के पैमाने बदल गए। 
इंसानियत छोड़ , इंसान बदल गए ,
उस छोटे से कसबे में जो दिखते थे घर, वो मकाँ बदल गए। 
देखता हूँ उनको नहीं डरते गलत करने में ,
सोचते हैं गलत करने क अंजाम बदल गए। 
सच्चे हैं जो परेसान हुआ करते हैं ,
कोसते हैं , हमारे तो भगवन बदल गए। 
बदलाव का ये क्या मंज़र दिखाया तूने ,
देखते देखते लोगों के ईमान बदल गए। 

Friday, March 27, 2015

सवाल ?

कितनी बनावटी जिंदगी जीते हैं हम , लड़का लड़की एक सामान का नारा बचपन से सुना था मैंने।
बचपन में सच में हम कितने भोले होते हैं , मैंने इस  बात को मान भी लिया की हाँ "लड़का  लड़की एक सामन होते हैं। " 
दोनों की शिक्षा जरुरी है। 
 दोनों का भविष्य उज्जवल होना चाहिये। 
 दोनों को आगे बढ़ना चाहिए , कंधे से कन्धा मिला कर काम करना चाहिए।  
कोई किसी से कम नहीं है।  
दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। 

इत्यादि…………… 


यही सब सुना था यही सब पढ़ा था यही सब देख रहा था अपने चारों तरफ , तो बस इसे ही सच मान लिया। 
आज जब मेरी नज़रों का दायरा कुछ बढ़ा तो समझ में आया , सच के  आगे भी एक सच है। 

सच तो ये भी है कि  शादी के  बाद अगर पति पत्नी के घर रुक जाये , तो बातें हो जाएँगी पत्नी के  घर रहता है ,
जोरू का गुलाम बन गया, क्युकि इस समाज को पता है की पत्नी को तो पति का गुलाम होना चाहिए इसलिए उसे पति के  घर जाकर उसकी गुलामी करनी चाहिए।  
लड़की अगर पति के घर चले जाये तो सब सामान्य , क्या किया उसने कुछ भी तो नहीं …… 
पहले मुझे लगता था की कितना बड़ा त्याग करती हैं बेचारी , पर नहीं मुझे so  called  समाज  ने जल्दी ही समझा  दिया , ये तो सदियों से होता चला आया है कोई बहुत बड़ा काम नहीं करती लड़की। 
खैर …… 
अपना घर छोड़ क जाने क बाद मिला क्या उसे एक अहसान अपने पति का -"मेरे घर में रहती हो मेरे हिसाब से चलना होगा "
हाहहहहह ..... 
भई, घर छोड  के  आये वो और यहाँ भी कोम्प्रोमाईज़ करे वो ……… 
हाँ हाँ उसे तो करना ही पड़ेगा वो लड़की है।
और कोम्प्रोमाईज़ करे भी क्यों न पापा ने तो दान दे दिया न - "कन्यादान "
और कह दिया -"बेटी वही तेरा घर है अब "

पापा का घर , पति का घर,  इन दो घरों के बीच कहा है उसका घर ?

किसी की पत्नी का देहांत हो जाये तो चार लोग उसे समझायेंगे की - "बेटे पूरी जिंदगी पड़ी है, किसी का साथ जरुरी है कब तक पुरानी बातें लेकर बैठे रहोगे ,तुम्हे शादी कर लेनी चाहिए। "
और किसी के  पति का देहांत हुआ तो यही चार लोग -"बेटी अब तो तेरा यही नसीब है , इसी  के सहारे तुझे जिंदगी गुजारनी है। "

क्यों हैं ऐसे दो मापदंड  ? लड़की के लिए कुछ और लड़के के लिए कुछ और  ??
मुझे नहीं समझ  आता  अब लड़का लड़की  एक सामान  का वो नारा। 

क्यों शादी के बाद एक बाप  मजबूर  हो जाता है की ये जानते हुए की उसकी बेटी परेसानी में है , नहीं कर पता इतनी हिम्मत की उसे घर वापस  ला सके ?
क्यों इस सामाज के नियम- कायदे  आड़े आते हैं उस मजबूर बाप के ?

क्यों वो लड़की नहीं कर पति इतनी हिम्मत की जा सके अपने पिता के घर ?
पिता के घर जाने से सरल क्यों उसे मर जाना लगता है ?
क्यों हम ऐसी परम्पराएँ बनाते हैं जो किसी की जिंदगी ही छीन ले  ?
परम्पराएँ और समाज तो जिन्दा लोगो क लिए हैं न, मुर्दो  क लिए नहीं ?

ऐसे  कितने ही क्यों से भरे सवाल दिलो दिमाग में गोते खा रहे हैं। 
और जवाब  दे सकते हैं तो तो बस हम , बस इतना करके की हम न बने कारण  इन सवालों का। 
 क्युकी हम से ही तो ये समाज बनता है। 
ना  हो हमारे दिलो दिमाग में दो मापदंड।  
एक लड़की क त्याग की हम क़द्र कर सकें। 

उस बाप की इज़्ज़त कर सकें , जिसने अपनी बेटी का दान दे दिया किसी और के  जीवन के लिए। 





Friday, April 25, 2014

किताब

                                 आज काफी समय के बाद मुझे अपने आप  करने से बात करने का समय मिला।  पुराने दिनों को याद करते हुए  मुस्कराहट चेहरे पर आई और मैंने मुस्कराहट के कारण, मेरे दोस्तों को call किया।  काफी अच्छा लगता है पुराने दोस्तों से बात करना, पुराने दिन जैसे जिन्दा हो जाते हैं, फिर उसी पुरानी खुसी से दिल झूम उठता है।  पर हाँ जो लोग जिंदगी को किताब कहते हैं और हर एक नए दिन को उस किताब का पन्ना , आज मुझे उनकी वो बात चरितार्थ सी होती लगी।
                               हर दिन का पन्ना लिखते - लिखते जब यह किताब  भर जाती है, तो दूसरी किताब शुरू हो जाती है और यह पुरानी किताब यादों की अलमारी में रख दी जाती है।  हर किसी बन्दे का ढंग अलग होता है इन पुरानी किताबों को सहेजने का।  कोई तो इसे कीमती वस्तु के जैसे अलमारी में सहेजता है, तो कोई तो बस यूँ ही रख देता है कहीं , जैसे शायद  उसे इस पुरानी किताब की जरुरत ही न हो।  आज जब मैंने अपनी यादों की अलमारी से अपनी वो किताब निकाली और उसमे लिखे हुए पुराने दिनों को याद करते हुए जब मैंने अपने उन दोस्तों को call किया तो जाना की उनमे से कुछ ने मेरी यादों को मेरी ही तरह अलमारी में सहेज कर रखा है और कुछ की वो किताबें धुल मिटटी खाती  किताबों का हिस्सा हैं , कुछ की किताबों से तो वो पन्ना फट ही गया या सायद चूहे खा गए जिनमे मेरी यादें थी।
                                मुझे कोई अफ़सोस नहीं , बदलाव तो प्रकृति का नियम है।  जब कुछ लोग हमारे नए साथी बनते हैं तो कुछ अपने आप ही पुराने हो जाते हैं।  पर हे प्रभु ! मेरी यही विनती है कि मुझे नए साथी देना , मैं खूब प्यार लूटा सकूँ उन पर , पर मेरे किसी साथी को पुराना मत करना, मेरी यादों की किताब का हर पन्ना  है , किसी भी पन्ने  को फटने मत देना ,मेरी किताब के पन्ने  पीले मत पड़ने देना।


felling blessed..........
24/11/2013

Wednesday, January 4, 2012

क्या दौर आया ज़माने का , की हिसाब करने वाले बिक गए ,
सच और झूठ क्या है ,ये बताने वाले बदल गए 
आँखों से आँसू ,नहीं छलकते अब ,
क्या कहें मृदु ,शायद आंसुओं के पैमाने बदल गए 
इंसानियत छोड़ ,इन्सान बदल गए ,
उस छोटे से कस्बे में जो दिखते थे घर ,वो माकन बदल गए 
देखता हूँ उनको ,नहीं डरते गलत करने में,
सोचते हैं ,गलत करने के अंजाम बदल गए 
सच्चे हैं जो ,परेशान हुआ करते हैं ,
कोसते हैं ,हमारे तो भगवन बदल गए 
बदलाव का ये क्या मंजर दिखाया तूने ,
देखते देखते लोगों क ईमान बदल गए .....

Tuesday, October 11, 2011

यूँ ही पड़ा हुआ था मैं ,
न होने का अहसास था ,
न ही न होने का गम 
क्या था मैं ,सोचता हूँ गर कभी 
तो बस जवाब आता है यही 
होने भी , मेरे अस्तित्व के न होने का पर्याय था . 
फिर अचानक मैं किसी की नजर में आया ,
जिसने मुझमें अनगिनत संभावनाएँ पायीं 
हाँ वही जिसने एक भविष्य देखा मुझमें 
हाँ मुझमें !

कैसे भूल सकता हूँ मैं उन कोमल हथेलियों को ,
जिसने मुझे बड़े प्यार से उठाया ,
एक मुस्कराहट थी उस चहेरे में ,
फिर उसने मुझे उन बड़े लोगों के बीच एक जगह दी 
वो जगह जो मैंने कभी सोची नहीं थी .
वो मुझे हर जरुरी चीज़ देता था ,
पानी भी और खाना भी ,
रोज़ मिलने भी आता था ,
जो नहीं आया कभी तो मैं परेशान हो जाता था . 

इन दिनों मैं बड़ा हो रहा था ,
उनकी भी नज़र में आ रहा था ,जिनकी नज़र में कभी नहीं आया था ,
कारण चूँकि बस उसने देखी थी मुझमें संभावनाएं ,
आजकल न जाने क्यों वो आता नहीं था ,
जब कभी आता भी तो बड़ा हाँफता था ,
बूढ़ा हो चूका था न 
काफी दिन हुए आज , उसे आये 
गलत गलत ख्याल आते हैं . 
अब तो उम्मीद ही नहीं रही की वो आएगा .

अब कुछ नये लोग आते हैं ,
वही जिनकी नजर में मैं कभी आया नहीं था 
काफी तारीफ करते हैं मेरी .
एक गर्व महसूस करता हूँ मैं ,
और कृतज्ञता ,बस उसके लिए 
उसने ही तो मुझे एक बीज से पेड बनाया है ...............

Saturday, August 27, 2011

नज़रों का फर्क

तुम्हारी नज़रों ने आज अजीब सा अहसास दिला दिया ,
एक ही चीज़ में नज़रों का फर्क सिखा दिया . 
तुमने कुछ कहा  तो वो confidence है ,
हमने कहा तो "अधजल गघरी छलकत जाए" . 
तुमने हासिल किया तो वो achivement ,
हमने किया तो luck by chance 
तुमने expression दिए तो attitude 
हमने दिए तो कितना rude है
तुमने थोडा पाया तो बड़ा दिखाया
हमारा तो बड़ा भी -"हूँ ,ठीक... है"
तुमने कहा तो वो सच है 
हमारा तो सच भी झूठ है
तुम्हारी खोखली हंसी में सब हंस पड़े 
और मेरे गम में भी सब दूर रहे खड़े 
पर ऐ मेरे दोस्त वास्तिवकता में आओ 
सोओ नहीं अब जाग भी जाओ 
जहाँ मैं हूँ कल तुम होओगे 
तुम्हारी जगह कोई और होगा 
ये दुनिया का चक्कर बड़ा निराला है
यहाँ सफ़ेद कपड़ों वाला भी अन्दर से काला है
नहीं बक्शा इस दुनिया ने किसी को तो फिर तुम कैसे बचोगे 
इसलिए कहता हूँ जी सकोगे कल तब ही जब आज साधारण रहोगे 
पर हाँ ! आज तुम्हारी नज़रों .......
एक ही चीज़ में....


ये क्या क्या हो रहा है

ये क्या क्या हो रहा है........  इंसान का इंसान से भरोसा खो रहा है, जहाँ देखो, हर तरफ बस ऑंसू ही आँसू हैं, फिर भी लोगों का ईमान  सो रहा है।  ...